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शब्द युग्म

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(@nirakar)
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शब्द युग्म

आना जाना जन्म मरण
धूप छांव उदय अस्त
सुख दुख जीत हार
शब्द युग्म यूं ही नही बने।

है गहरा रहस्य छिपा इनमें
जिसे हमने  जाना ही नही
रहे सिर्फ शब्द तक सीमित
गूढ़ अर्थ तक गए ही नही ।

लगता अच्छा सब को आना
कोई नहीं चाहता जाना
क्रम नियति का कैसे रहेगा बना
स्व लोभवश नहीं पहचाना ।

करना होगा स्वीकार हमें
उदय के संग अस्त को
तब ही अपना सकते है
जीवन शब्द अलमस्त को ।

शब्द युग्म को विस्मृत कर
करते हिसाब क्या क्या घटा
बोझिल हो जाता तन मन
संध्या वेला की है अपनी छटा ।

करो स्वागत समापन का भी
जैसे किया उदघाटन का
मिट जाएगा क्लेश मन का
तय है जाना तन का ।।

✍ नारायणसिंह निराकार🙏
साकेत साहित्य संस्थान, राजसमन्द
28 सितंबर 2020


   
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