कविता
यह कविता उन स्त्रियों के लिए जो पुरुषों को झूठे आरोपों में फ़ँसाती है। ऐसे पुरुषों के सच्चे होने पर भी उनके हृदय मे जीवनभर दावाग्नि जलती रहती है। जब तक उन्हें न्याय मिलता है तब तक या तो उनकी उम्र निकल जाती है या साँसे :-
मैं स्त्री हूँ, करती हूँ सबमें प्रवेश, निवेश हूँ और हूँ सबसे विशेष।क्यूँ भूलूँ कि मैं ही आरम्भ, मैं ही