जहां कहीं जाते हैं
अपनी डिग्रियों, पुरस्कारों से
भरे थैले का बोझ उठा लाते है।
इसे कहीं रखते भी नहीं
बोझ कैसा भी हो
बोझ तो बोझ है।
डा नंदन नंदवाना
साकेत साहित्य संस्थान
जहां कहीं जाते हैं
अपनी डिग्रियों, पुरस्कारों से
भरे थैले का बोझ उठा लाते है।
इसे कहीं रखते भी नहीं
बोझ कैसा भी हो
बोझ तो बोझ है।
डा नंदन नंदवाना
साकेत साहित्य संस्थान